Friday, October 23, 2009

खबरवालों की खबर

पिछले दिनों मुंबई हमलों के दौरान खबरिया चैनलों की शर्मनाक भूमिका को अभी तक लोग ठीक से भूल भी नहीं पाए थे कि भारत-चीन संबंधों पर इनका नकारात्मक रुख एक बार फिर चर्चा में है
हाल ही में सामने आई चीन के हेलीकॉप्टर के भारत की सीमा में घुस आने कि घटना हो या फिर अरुणाचल प्रदेश में चीनी सेना की घुसपैठ की घटना हो, दोनों घटनाओं को इस तरीके से घुमा-फिराकर पेश किया जा रहा है कि लगता है जैसे हम युद्ध के मुहाने पर ही खड़े हैं साधारण रक्षा सौदों, युद्धाभ्यासों तथा अन्य सैन्य गतिविधियों को भी युद्ध से जोड़कर दिखाया जा रहा है
ऐसे समय में कि, जब हम अपने पड़ोसी देशों के साथ सामरिक सम्बन्ध स्थापित करने कि जुगत में लगे हुए हैं, क्या इस तरह की खबरें हमारे वैश्विक संबंधों को प्रभावित नहीं करतीं ? इस तरह कि मनगढ़ंत अफवाहों का हमारे वैश्विक संबंधों पर कितना गहरा असर पड़ सकता है, इसका अंदाजा शायद हमारे खबरिया चैनलों को नहीं है और वैश्विक संबंधों को चलो पल भर के लिए छोड़ भी दें तो देश के भीतर ऐसे हालात पैदा हो रहे हैं, जो चिंताजनक हैं उदहारण के लिए, सैन्य आंकड़ों की तुलना करके जिस तरह से बताया जा रहा है कि चीन भारत से तीन गुना ज्यादा ताकतवर है, उससे देश की जनता भयाक्रांत है कहीं न कहीं उसके मन में असुरक्षा की भावना घर कर रही है 'हमारी सरकार तथा सेना चीन से निपटने में सक्षम नहीं है', जैसे वक्तव्यों से जनता की देश, सरकार तथा सेना के प्रति निष्ठा टूट रही है किसी भी लोकतांत्रिक देश के किये यह निश्चित रूप से चिंता का विषय है और तो और क्या इस तरह के तुलनात्मक आंकड़ों से सेना का मनोबल नहीं गिरता ?
स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वयं प्रधानमन्त्री को यह बयान देना पड़ा कि मीडिया भारत-चीन मुद्दे पर संतुलित भूमिका निभाये तथा तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत न करे इसके बावजूद इन तमाम खबरिया चैनलों के कानों पर जूं रेंगती नहीं दिखाई देती टी.आर.पी. की होड़ में इन्होनें राष्ट्रीय हितों को भी ताक पर रख दिया है नौबत यहाँ तक आ गयी कि दो पत्रकारों के खिलाफ एफ. आई.आर. तक दर्ज करनी पड़ी
हास्यास्पद बात यह है कि इस तरह के कारनामों से इन खबरिया चैनलों को ही सबसे ज्यादा बट्टा लगता है कुछ समय के लिए भले ही उनकी टी.आर.पी. चोटी पर पहुँच जाती है लेकिन बाद में जनता के बीच उनकी विश्वसनीयता न के बराबर रह जाती है इसका परिणाम यह होता है की इस तरह के चैनलों को देखते ही लोग चैनल चेंज कर देते हैं और इस 'चैनल चेंज' के बाद क्या स्थिति होती है उसे ये खबरिया चैनल अच्छी तरह से समझते हैं , लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों ये सब इस तरह की हरकतों से बाज नहीं आते
सहोदर बंधुओं, हमें यह जानना होगा कि आज जनसंचार के आयाम बदल चुके हैं सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में हमारी बात सिर्फ हम तक नहीं रहती अपितु पूरे विश्व तक जाती है ऐसे में इस तरह के संवेदनशील मुद्दे पर कोई बात कहने से पहले हमें अच्छी तरह से विश्लेषण कर लेना चाहिए कि इसका प्रभाव क्या होगा ? हमारे वैश्विक संबंधों पर इसका क्या असर होगा ? आम जनता इससे किस तरह से प्रभावित होगी ? इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे ? आदि आदि, अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब मीडिया की इस तथाकथित 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' को पुनः 'सेंसरशिप' की बेड़ियों में जकड़ा जाएगा

 
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